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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2680
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य


अध्याय -  12 

पिता
- ज्ञानरंजन

 

प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

साठोत्तरी कहानीकारों में कहानीकार ज्ञान रंजन का नाम विशेष प्रकार की कहानियाँ लिखने वाले कहानीकार के रूप में जाना जाता है। संक्षेप में, इनक व्यक्तित्व और कृतित्व परिचय इस प्रकार है -

व्यक्तित्व समर्थ कथाकार - ज्ञान रंजन का जन्म नवम्बर 1936 को महाराष्ट्र के अके जिले में हुआ। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण करन के के पश्चात् कु वर्षों तक अध्यापन कार्य किया तत्पश्चात् साहित्यिक पत्रिका 'पहल' का कुशल सम्पादन का सम्पादक के रूप में पर्याप्त ख्याति अर्जित की।

कृतित्व - ज्ञान रंजन सातवें दशक के सशक्त कहानीकार हैं। इनका पहला कहानी संग्रह 'फेंस के इधर-उधर सन् 1968 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद यात्रा, सपना नहीं, क्षणजीवी आदि कई कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए।

कहानी लेखन और सम्पादन के साथ-साथ ज्ञान रंजन ने अनेक विषयों पर लेख भी लिखे जो 'कबाड़खाना' नामक पुस्तक में संकलित हैं।

ज्ञान रंजन की अनेक कहानियों का अंग्रेजी, जर्मन तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में इनकी रचनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। 'अनुभव', 'घंटा', 'बहिर्गमन' तथा 'पिता' इनकी चर्चित कहानियाँ हैं।

कहानी कला तत्त्वों के आधार पर 'पिता' की समीक्षा

'पिता' ज्ञान रंजन जी की एक सामाजिक परिदृश्य को व्यक्त करती यथार्थपरक कहानी है। इसमें लेखक ने भारतीय समाज में व्यापक पीढ़ी अन्तराल से उत्पन्न साधारण परन्तु जटिल समस्याओं को उकेरा है। ज्ञान रंजन एक पारखी कथाकार हैं मनो मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को उन्होंने बखूबी पकड़ा है। कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर 'पिता' कहानी की समीक्षा इस प्रकार है -

शीर्षक - प्रस्तुत कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, सरल, आकर्षक, कौतूहलवर्धक और सुन्दर बन पड़ा है। यह शीर्षक कहानी के कथानक का सफल प्रतिनिधित्व करता है। सम्पूर्ण कहानी पिता के इर्द-गिर्द घूमती है। प्रथम पुरुष पात्र 'वह' के माध्यम से पिता के विषय में अवगत कराया गया है। इस कहानी का शीर्षक सार्थक और उपयुक्त है। कहीं भी अस्वाभाविकता लक्षित नहीं हैं अतः

कथावस्तु - प्रस्तुत कहानी की कथावस्तु भारतीय समाज के एक प्रगतिशील परिवार पर आधारित है जिसमें एक पिता अपनी मेहनत और कर्त्तव्य के चलते परिवार को खुशहाल जीवन देने में तो सफल होता है परन्तु स्वयं सुख-सुविधाओं का उपयोग न करके स्वयं भी कष्ट पाता है और दूसरों को भी कष्ट देता है।

यह कहानी दो पीढियों के मानसिक संघर्ष की कहानी है जो स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। पुरानी पीढ़ी के पिता नयी पीढ़ी के आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान आदि पर टिप्पणी करते हैं। तो नयी पीढ़ी भी कुछ समय चुप रहने के पश्चात् अपने तेवर दिखाने लगती है। पिता नयी पीढी के साथ स्वयं में बदलाव नहीं लाना चाहते। अपनी हठधर्मिता के कारण वह अपने ही घर में, अपनी ही जुटाई सुख-सुविधाओं के बीच स्वयं को बाहरी व्यक्ति बना लेते हैं। हर बात में टीका टिप्पणी के चलते घर के अन्य सदस्य उन्हें उनके हाल पर छोड़ देने के लिए बाध्य हो गये हैं। उनके साथ कोई बैठना नहीं चाहता। छोटा बेटा उनके तकलीफ से आहत है पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के भय में वह भी साधिकार बाहरी गर्मी में सोने के लिए जद्दोजहद करते पिता को घर के अन्दर लाने में असमर्थ पाता है। महंगे कपड़े, फल, मिठाई, फैशन पिता को अखरते हैं। वह अपनी पुरानी धुरी पर चलते हैं। इसी पीढ़ी अन्तराल के कारण उत्पन्न दैननंदिन की घटनाओं, सभ्यताओं की कहानी के माध्यम से उभारा गया है।

कहानी की कथावस्तु संक्षिप्त, सजीव, स्वाभाविक सुसंगठित है। यथार्थ को बहुत मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कथावस्तु की दृष्टि से कहानी पूर्ण है।

पात्र और चरित्र-चित्रण - ज्ञान रंजन घटनाओं ओर वातावरण के आधार पर कथा बुनते हैं इसलिए उनके द्वारा प्रयुक्त पात्र संख्या में कम ओर वर्ग प्रतिनिधित्व करने वाले होते हैं। इस तत्त्व का निर्वाह भी लेखक बड़ी कुशलता से करता है। पिता पुरानी पीढ़ी का और प्रत्यक्षदर्शी पुत्र नयी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। शेष उल्लिखित पात्र गौण है। ज्ञान रंजन द्वारा प्रयुक्त ये दोनों पिता-पुत्र पात्र समाज के मध्यवर्ग से सम्बद्ध है। पुत्र- पिता के चरित्र को परत-दर-परत उधाड़ने का कार्य करता है। लेखक ने एक पात्र के माध्यम से दूसरे पात्र का चरित्रोद्घाटन बड़ी कुशलता से कराया है। पात्र पिता पुरानी परम्परा से बंधा एक हठधर्मी, तर्कशील, कर्त्तव्यनिष्ठ, परिश्रमी, चिंतनशील पिता है जो अपने परिवार के लिए पूरा जीवन संघर्ष करता है लेकिन अपनी हठधर्मिता के कारण परिवार के आदर-सम्मान से वंचित रहता है, जिसका अर्थ वह अधिकारी है। प्रत्यक्षदर्शी पुत्र, सहज, सरल, स्नेह, सेवा भावी, पुत्र है लेकिन पिता की तर्कशक्ति के समक्ष वह विवश है। इन पात्रों के माध्यम से लेखक भारतीय परिवारों में तेजी से पनपते पीढ़ी अन्तराल की वैचारिक और मनोवैज्ञानिक जटिलताओं को प्रस्तुत करने में सफल हुआ है।

कथोपकथन अथवा संवाद - प्रस्तुत कहानी वर्णनात्मक शैली में लिखी गई है। इसलिए संवादों का प्रयोग कम ही देखने में आता है परन्तु जहाँ भी संवादों का प्रयोग हुआ है वे सरल, स्पष्ट, स्वाभाविक, सजीव, रोचक, पात्र एवं वातावरण अनुकूल बन पड़े हैं तथा कहानी के विकास में सहायक सिद्ध हुए हैं। उदाहरण द्रष्टव्य है.

"सुधीर ने कहा, 'कपड़ा कीमती है, चलिए एक अच्छी जगह में आपका नाम दिलवा दूँ। यह ठीक सियेगा, मेरा परिचित भी है।"

वह चिढ़ उठे, "मैं सबको जानता हूँ, वही म्युनिसिपल मार्केट के छोटे-मोटे दर्जियों से काम कराते और अपना लेबल लगा देते हैं। साहब लोग, मैंने कलकत्ते के 'हाल एंडरसन' के सिले कोट पहने हैं। अपने जमाने में, जिनके यहाँ अच्छे-खासे यूरोपियन लोग कपड़े सिलवाते थे। ये फैशन वैशन, जिसके आगे आप लोक चक्कर लगाया करते हैं, उसके आगे पाँव की धूल है। मुझे व्यर्थ पैसा नहीं खर्च करना है।' सुधीर ने कपड़ा छोड़ दिया "जहाँ चाहिए सिलवाइये या भाड़ में झोंक आइये हमें क्या।'

इस प्रकार ये संवाद पिता-पुत्र के वैचारिक स्तर को दर्शाने में सहायक हुए हैं।

भाषा-शैली - प्रस्तुत कहानी की भाषा सरल, स्पष्ट सजीव और स्वाभाविक है। ज्ञान रंजन की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह सरल स्वाभाविक भाषा में यथार्थ को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। पात्र व वातावरण के अनुकूल भाषा कहानी को नया रूप प्रदान करती है। कहानी की भाषा में अंग्रेजी, उर्दू-फारसी शब्दों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में लेकिन यथास्थान हुआ है।

अंग्रेजी शब्द - पैड स्टल, शावर, बिस्किट, एम्पोरियम, रिलीफ, काफी हाउस, वैनिटी, हिप, लेबल, लोकोशेड इंजिन, संटिंग, क्रांकीट, ग्रैंड ट्रंक आदि।

उर्दू-फारसी - खलल, फजीहत, दिक्कत, उम्मीद, बेहद, सदरी, बेहतरीन, बमुश्किल, दर्जी, हरकत, लिहाज इतमीनान आदि। इसके अतिरिक्त देशज शब्दों का प्रयोग भी लेखक ने भरपूर किया है। जैसे- डकार, गच, गंजी, डोलता, चुनावा, हड़काना, लपटू, हलकान, भिंचाव, औध आदि।

मुहावरों का प्रयोग भी द्रष्टव्य है - बत्ती छाती पर होना, पत्ता भी न डोलना, चिरौरी करना, चुटकी भर में धरा रह जाना, भाड़ में झोंकना, दीवारों को भी पसीना आना, खुद को छुरा भौंकना आदि। पिता की भाषा में व्यंग्यात्मकता के पुट ने कहानी की भाषा को और भी प्रभावशाली बना दिया है। यथा - आप लोग जाइए न भाई, कॉफी हाउस में बैठिए, झूठी वैनिटी के लिए बेयरा को टिप दीजिए, रहमान के यहाँ डेढ़ रुपये वाला बाल कटाइए, मुझे क्यों घसीटते हैं।'

भाषा की तरह कहानी की शैली भी अत्यन्त सरस, प्रवाहपूर्ण और रोचक है। लेखक ने वर्णनात्मक, परिचयात्मक, व्यंग्यात्मक विश्लेषणात्मक प्रश्नवाचक आदि शैलियों के माध्यम से अपने भाव-विचारों को पाठकों के अनुकूल बनाया है।

उद्देश्य - कहानी 'पिता' एक सहज-सरल परन्तु उद्देश्यपूर्ण कहानी है। इसमें लेखक ने दो पीढ़ियों के विचार वैभिनय को बड़े कौशल के साथ चित्रित किया है। पीढ़ी अन्तराल का प्रभाव भारतीय समाज के अधिकांश परिवारों पर पड़ता है। कहीं पुरानी पीढ़ी की परिवर्तनशीलता से दंशित है तो कहीं नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की हठधर्मिता के चलते स्वयं को असहाय अनुभव करती है। ज्ञान रंजन जी ने सामाजिक जीवन की विसंगतियों, विद्रूपताओं और खोखलेपन को सूक्ष्मता से उजागर किया है। कहानी 'पिता' के माध्यम से उन्होंने दो पीढ़ियों के बीच पनपे वैचारिक भिन्नता को कम करने का प्रयास किया है। दोनों पीढ़ियों को परस्पर सामंजस्य की आवश्यकता है न कि हठधर्मिता की। हठ पर चाहे कोई अड़ा रहे पिसता पूरा परिवार है। बाह्यरूप से हँसते-खेलते सुखी होने का नाटक करते परिवार छोटी-छोटी घटनाओं से कितना खोखलापन, अकेलापन, विपरीतता आदि झेलते हैं। उस सबसे बाहर निकालने के उद्देश्य से इस कहानी की संरचना की गई है।

वातावरण-देशकाल - कहानी 'पिता' वातावरण से अनुप्राणित कहानी है। कहानीकार ज्ञान रंजन जी ने वातावरण तत्त्व का बड़ी सुन्दरता और स्वाभाविक रूप से निर्वाह किया है। कहानी में लेखक ने मध्यमवर्गीय परिवार के वातावरण और विचारों का यथार्थ चित्रण किया है। साथ ही पात्रों की मनःस्थिति का भी सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है। वातावरण को दर्शाता एक चित्र प्रस्तुत है "न लोको शेड से उठती इंजनों की शंटिंग, न कांक्रीट की ग्रैंड ट्रंक पर से होकर आती घूमनगंज की ओर इक्के-दुक्के लौटते इक्कों के घोड़ों की टापे, झगड़ते कुत्तों की भोंक- झोंक। बस कहीं उल्लू एक गति, एक वजन और वीभत्सता से बोल रहा है। रात्रि में शहर का आभास कुछ पलों के लिए मर-सा गया है। उसको उम्मीद हुई कि किसी भी समय दूर या पास से कोई आवाज अकस्मात उठ आएगी घड़ी टनटना जायेगी या किसी दौड़ते हुए ट्रक का तेज लम्बा हार्न बज उठेगा और शहर का मरा हुआ आभासा पुनः जीवित हो जायेगा।' मनःस्थिति को व्यक्त करता चित्र द्रष्टव्य है - "दादा भाई ने अपनी पहली तनख्याह में गुसलखाने में उत्साह के साथ एक खूबसूरत शावर लगवाया लेकन पिता को अर्से से हम सब आँगन में धोती को लंगोट की तरह बाँधकर तेल चुपड़े बदन पर बाल्टी- बाल्टी पानी डालते देखते आ रहे हैं। खुले में स्नान करेंगे, जनेऊ से छाती और पीठ का मैल काटेंगे। शुरू में दादा भाई ने सोचा, पिता उसके द्वारा शावर लगवाने से बहुत खुश होंगे और उन्हें नई चीज का उत्साह होगा। पिता ने जब उत्साह प्रकट न किया तो दादा भाई मन-ही-मन काफी निराश हो गए। इस प्रकार अनेक वर्णनों से वातावरण को उभारा गया है। कहानी कला के इस तत्त्व पर कहानी 'पिता' खरी सिद्ध हाती है।

निष्कर्ष - कथाकार ज्ञान रंजन की यह कहानी हिन्दी की एक प्रभावशाली रचना है। इसमें सभी तत्त्वों का बड़े प्रभावशाली ढंग से चित्रण हुआ है। 'पिता' कहानी एक सामाजिक यथार्थवादी कहानी है। कहानी में लेखक ने आज के बदलते परिवेश में पारिवारिक सम्बन्धों, भाव-विचारों को बड़े यथार्थवादी, सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यक्त किया है। वस्तुतः पिता कहानी हिन्दी कहानी साहित्य की अनुपम कृति है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
  4. प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
  6. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
  7. प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
  8. प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
  9. प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
  10. प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
  12. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
  13. प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
  16. प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
  17. प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
  23. प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
  24. प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  25. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
  27. प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
  28. प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
  30. प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
  32. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
  37. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
  39. प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  40. प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
  43. प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
  44. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  46. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
  47. प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  49. प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
  50. प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
  51. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  52. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- घीसू और माधव की प्रवृत्ति के बारे में लिखिए।
  54. प्रश्न- घीसू ने जमींदार साहब के घर जाकर क्या कहा?
  55. प्रश्न- बुधिया के जीवन के मार्मिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए।
  56. प्रश्न- कफन लेने के बजाय घीसू और माधव ने उन पाँच रुपयों का क्या किया?
  57. प्रश्न- शराब के नशे में चूर घीसू और माधव बुधिया के बैकुण्ठ जाने के बारे में क्या कहते हैं?
  58. प्रश्न- आलू खाते समय घीसू और माधव की आँखों से आँसू क्यों निकल आये?
  59. प्रश्न- 'कफन' की बुधिया किसकी पत्नी है?
  60. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कफन)
  61. प्रश्न- कहानी कला के तत्वों के आधार पर प्रसाद की कहांनी मधुआ की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मधुआ)
  65. प्रश्न- अमरकांत की कहानी कला एवं विशेषता पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- अमरकान्त का जीवन परिचय संक्षेप में लिखिये।
  67. प्रश्न- अमरकान्त जी के कहानी संग्रह तथा उपन्यास एवं बाल साहित्य का नाम बताइये।
  68. प्रश्न- अमरकान्त का समकालीन हिन्दी कहानी पर क्या प्रभाव पडा?
  69. प्रश्न- 'अमरकान्त निम्न मध्यमवर्गीय जीवन के चितेरे हैं। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जिन्दगी और जोंक)
  71. प्रश्न- मन्नू भण्डारी की कहानी कला पर समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से मन्नू भण्डारी रचित कहानी 'यही सच है' का मूल्यांकन कीजिए।
  73. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी के उद्देश्य और नामकरण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  75. प्रश्न- कुबरा मौलबी दुलारी को कहाँ ले जाना चाहता था?
  76. प्रश्न- 'निशीथ' किस कहानी का पात्र है?
  77. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (यही सच है)
  78. प्रश्न- कहानी के तत्वों के आधार पर चीफ की दावत कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
  79. प्रश्न- 'चीफ की दावत' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- चीफ की दावत की केन्द्रीय समस्या क्या है?
  81. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चीफ की दावत)
  82. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  84. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखिए।
  89. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- क्या फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों का मूल स्वर मानवतावाद है? वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है?
  92. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तीसरी कसम)
  93. प्रश्न- 'परिन्दे' कहानी संग्रह और निर्मल वर्मा का परिचय देते हुए, 'परिन्दे' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  94. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परिन्दे' कहानी की समीक्षा अपने शब्दों में लिखिए।
  95. प्रश्न- निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व और उनके साहित्य एवं भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  96. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (परिन्दे)
  97. प्रश्न- ऊषा प्रियंवदा के कृतित्व का सामान्य परिचय देते हुए कथा-साहित्य में उनके योगदान की विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर ऊषा प्रियंवदा की 'वापसी' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  99. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (वापसी)
  100. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  101. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  103. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (पिता)

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